मिर्च की खेती की पूरी जानकारी
1.टमाटर व मिर्च की खेती एक ही खेत मे या नज़दीकी खेत मे न करें क्योंकि इनमे कीड़े व रोग एक जैसी होती हैं। सहफसलों से एंथ्राक्नोज़ और बेक्टीरियल झुलसा रोग फैल सकते हैं।
2. अधिक रोगाणु मिट्टी की ऊपरी सतह पर होते हैं। कुछ किसान ऊपरी सतह(30cm) निकाल देते हैं व फिर निचली सतह इस्तेमाल करते है जिससे गलन नहीं होता।
3. प्याज़ व धनिया के साथ मिश्रित खेती से अधिक आय मिलती है व खरपतवार की संख्या कम करने मे भी सहायता मिलती है।
4. यदि मिर्च के साथ प्याज़, लहसुन और गेंदे की मिश्रित खेती की जाये तो सूत्रकृमि की रोकथाम मे सहयोग मिलता है।
किस्में
जवाहर मिर्च-218, पूसा सदाबहार, एन.पी.-46, पूसा ज्वाला, जेसीए158, जी-7, जी-3, अर्का लोहित, पूसा सदाबहार, भाग्यलक्ष्मी, कल्यानपुर टाईप 1-2, एक्स 235, एम.ओ.यू.-1, एच.सी.-28, पंत सी-1, के-2, एच.सी.-44, अर्कालोहित के-1.
निजि कंपनियो द्वारा विकसित किस्में
सिजेंटा इंडिया- रोशनी, हॉटलाइन, पीकाडोर, अभिरेखा, एचपीएच2424
सेमिनिस वेजीटेबल्स- ज्वालामुखी, दिल्ली हॉट, रविंदू, सितारा, रेडहाट, मेगाहाट, एचपीएच 4884, हॉट पेपर
नुनहेम्स सीड्स- क्रान्ति रुद्रा, सोल्जर, उजाला 2680, न्यू वरदान, अभिरेखा, वीरू, सिंदूर
नामधारी सीड्स-एनएस-686, 222, 1701, 408, 407, 250, 208, प्रगति
अंकुर सीड्स - आचारी, गुलजार, एआरसीएच-226, 32, 313, 162, 547, 531.
बेजो शीतल- अनमोल, अर्जुन, सावित्री, अग्रीमा-269, गरिमा-378, सुपर अर्जुन, झनकार, जलवा, दिशा-453.
जेके एग्री जेनेटिक्स- जेकेएचपीएच-301, जेके दिव्या(178), जेके-1020.
आईआईवीआर द्वारा विकसित की गई किस्में
हाइब्रिड काशी अर्ली, काशी अनमोल , काशी सुर्ख
पौधशाला
भूमि का चुनाव
नर्सरी के लिए उपजाऊ, अच्छी जलधारण क्षमता व जलनिकासवाली, जहा पेड़ की छाया रहित, खरपतवार मुक्त भूमि का चयन करना चाहिए।
भूमि की तैयारी
• नर्सरी के लिए चयन की हुई भूमि मे गर्मियों में गहरी जुताई करें।
• मई महीने में सिंचाई के बाद दो तीन जुताई करें।
• भूमि पर गेहूं का भूसा या घास का 15 सेंटीमीटर ऊंचा थर बनाएँ और इसे हवा की विरुद्ध दिशा में जलाएं। जिससे फंफूद, कीट, कृमि और खरपतवार के बीज नष्ट हो जाते हैl
• सिंचाई के बाद क्यारी की माप के अनुसार भूमि को 75 से 100 माइक्रोन वाले प्लास्टिक से ढकें। उनकी किनारियों को मिट्टी से दबा दें। इससे जमीन में आश्रित फंफूद, कीट, कृमि आदि नष्ट हो जाएँगे।
• इसके बाद जरूरत के अनुसार दो-तीन जुताई कर पाटा चलाकर भूमि को समतल करें।
देशी खाद
15-20 किलो अच्छी सड़ी गोबर की खाद मिलाकर क्यारियो को समतल कर लेना चाहिये।
उठी हुई क्यारियाँ बनाएँ
पौधे की जरूरत और ढलान के अनुसार अधिक पानी से निकास की व्यवस्था कर 5 से 8 मीटर लंबी व 2 से 2.5 मीटर चौड़ी उठी हुई क्यारियाँ बनाएँ। क्यारियाँ बनाते समय मेड़ों पर मिट्टी चढ़ाएँ और उसे पर से सही से दबा दें। क्यारियाँ बनाने के बाद 5 से 10 सेंटीमीटर के अंतर पर कतारें बनाकर बीज बोएं। बुवाई के बाद मध्य में आधे से पोने मीटर के अंतर पर ईटें रखे जिससे खेती कार्य करने में सुविधा रहे।
बीज उपचार
1. बुवाई से पहले बीज का 3 ग्राम थायरम या 1 ग्राम कार्बेन्डाज़िम (बाविस्टीन, सहारा) / किलो बीज की दर से उपचार करें।
2. रसायनिक उपचार के बाद, बीज को 5 ग्राम ट्राईकोडर्मा/ किलो बीज की दर से उपचारित करे। इन्हें छाँव मे रखें व इन्हे बुवाई हेतु उपयोग करें।
बुवाई
खरीफ फसल की बुवाई जून महीने में करें। एक एकड़ के लिए 300 ग्राम बीज की जरूरत होती है। 1 एकड़ में 60000 पौधे (हर जगह दो पौधे के हिसाब से) होने चाहिए। रोपाई हेतु 60 x 60 सेंटीमीटर का अंतर रखे। नर्सरी में बीज की मात्रा अनुमोदित रखे। अगर बीज दर ज्यादा हो तो अंकुरण देर से होता है। पौधे का विकास कम होता है और पौधसड़न ज्यादा। बुवाई से पहले क्यारियों में हल्की सिंचाई दे। फिर खुदाई कर अनुमोदित मात्रा में खाद डालें। पौधे को लाल कीड़ी, दीमक, केचुआ, कृमि व रसचूसक कीट से बचाने हेतु खाद के साथ 300 ग्राम कार्बोफ्यूरान डालकर जमीन में मिला दें। भूमि समतल करने के बाद दँताली से 5 से 10 सेंटीमीटर के अंतर पर 2 से 2.5 सेंटीमीटर गहरी नाली बनाकर उसमें बीज बोएं।
नर्सरी की देखभाल
• नर्सरी में आवश्यकतानुसार फुवारे से पानी देते रहे।
• गर्मियो मे एग्रोनेट का प्रयोग करने से भी भूमि से नमी जल्दी उड जाती है। जिससे कभी कभी दोपहर के बाद एक दिन के अंतर पर पानी छिड़के।
• बारिश के मौसम में अगर पानी के निकास की व्यवस्था करे।
• बीज के अंकुरण के 4 से 5 दिन बाद घास आवरण हटायें। क्यारियों मे से घास - कचरा साफ करे।
• पौध गलन नियंत्रण हेतु क्यारियाँ साफ करने के बाद मेटालेक्सिल एम ज़ेड (रीडोमिल) का @ 2 ग्राम/ 10 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करे।
• पौधे बड़े हों तब बादली वाले मौसम में या लगातार बारिश हो रही हो तो मेटालेक्सिल एम ज़ेड (रीडोमिल) का @ 2 ग्राम / 10 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करे।
• नर्सरी को हमेशा खरपतवारमुक्त रखे।
• अगर सूक्ष्मतत्वो की कमी दिखे तो पानी में घुलनशील सूक्ष्मतत्वो का छिड़काव करे।
अन्य देखभाल
अगर जिंक, लोह या बोरॉन की कमी दिखे तो निवारण हेतु 40 ग्राम फेरस सल्फेट, 20 ग्राम जिंक सल्फेट और 10 ग्राम बोरिक एसिड / बोरेक्स/ 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करे।
सूक्ष्मतत्वो का घोल बनाने का तरीका
10 लीटर पानी में 250 ग्राम चूना रात में भिगो कर रख दें। दूसरे दिन इस घोल मे से 1 लीटर चूने का पानी तैयार करे। फिर 1 लीटर पानी में 40 ग्राम फेरस सल्फेट, 20 ग्राम जिंक सल्फेट और 10 ग्राम बोरिक एसिड / बोरेक्स को मिक्स कर छान लें। इसमें 1 लीटर चूने का पानी, 8 लीटर सादा पानी मिलाकर 10 लीटर का घोल बनाए। घोल में टीपोल या साबुन का घोल डालकर सुबह जल्दी या शाम को 7 दिन के अंतर पर दो बार छिड़के।
रोपाई
भूमि का चुनाव व तैयारी
फंफूद व इल्ली का प्रकोप कम करने हेतु गर्मी मे गहरी जुताई करे तथा जमीन को तपने दें।
जमीन में 8-10 टन सड़ी हुई गोबर खाद/ एकड़ के हिसाब से रोपाई से पहले दें।
गंठवा कृमि से 27% तक उपज कम हो सकती है। नियंत्रण के लिए कार्बोफ्यूरॉन 3G @ 12kg/ एकड़ हिसाब से दें।
संभव हो तो जून के आखरी सप्ताह में या जुलाई के प्रथम सप्ताह में हरी खाद लगाएँ।
रसायनिक खाद
अच्छे विकास हेतु बुवाई के समय आधार खाद के रुप मे 20 kg नाइट्रोजन (100 kg अमोनियम सल्फेट) व 20 kg फोस्फरस(125 kg SSP)/एकड़ दें।
अच्छे विकास हेतु बुवाई के 20 - 30 दिन पर फूल आने और प्रथम तुड़ाई के समय 20 kg नाइट्रोजन (43kg यूरिया और 96kg एमोनियम सल्फेट)/ एकड़ दें।
स्वस्थ और अच्छे विकास हेतु 25 kg नाइट्रोजन (55 kg यूरिया या 125 kg एमोनियम सल्फेट) व 50 kg पोटाश (85 kg MOP) / एकड़ फूल आने के समय दें।
रोपाई
रोपाई का आदर्श समय 15 अगस्त से 15 सितंबर के बीच का है। हल्की बारिश गिरते समय रोपाई करने से पौधे अच्छी तरह से लग जाते है।
अच्छे विकास हेतु बुवाई के 5 - 6 हफ्ते बाद 15 - 20 सेमी के स्वस्थ पौधे 60 x 60 सेमी के अंतर रोपाई करें। एक जगह पर 5 सेमी के अंतर पे 2 पौध लगाएँ।
पौधे की पर्याप्त संख्या हेतु रोपाई के 10-15 दिन बाद खाली स्थान में नए पौधे लगाएँ। शुरुवात में विकास धीरे होने के कारण ये क्रिया 2-3 बार कर सकते है।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवारो से 80% तक उपज कम हो सकती है, नियंत्रण हेतु रोपाई के 2-3 दिन पहले पेन्डीमीथेलीन (स्टोम्प) @ 1.3 लीटर / एकड़ / 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़के।
सिंचाई प्रबंधन
बारिश न होने पर भूमि के नमी के अनुसार 15 से 20 दिन के अंतर पर सिचाई दे। फूल व फल के विकास हेतु भूमि मे नमीं बनी रहे इसका खास ध्यान रखे। हमेशा हल्की सिंचाई करें। जिससे फल की गुणवत्ता बनी रहे।
पानी में घुलनशील खाद का छिड़काव समयपत्रक
पानी में घुलनशील खाद का छिड़काव निम्न अनुसार करें।
घुलनशील खादप्रमाण (ग्राम/लीटर)छिड़काव का समय12:61:005पौधे के विकास की अवस्था में एक छिड़काव (रोपाई के 40 से 45 दिन बाद)फूल आने के समय पहले और बाद में एक एक स्प्रे करे।
00:52:34 रोपाई के 30 से 35 दिन से 8 दिन के अंतर पर 2 से 3 छिड़काव करे।
00:00:50 फल विकास की अवस्था से 8 दिन के अंतर पर 2 छिड़काव करें।
कीट नियंत्रण
थ्रिप्स
थ्रिप्स पत्तियों मे से रस चूसती है, शुरुआत मे थ्रिप्स का विकास खरपतवार पर होता है बाद में वो पौधो पर हमला करती है इस लिए फसल को खरपतवार मुक्त रखे। इस कीट से पत्तीमोड विषाणु फैलता है। अगर प्रकोप अधिक हो तो, फिप्रोनिल 5SC (रीजेंट, रेबीड, फेक्स) @ 30ml/ 15Ltr पानी या इमिडाक्लोप्रिड 350SC (कोन्फ़िडोर सुपर) 30 मिली/ एकड़, 200 लीटर पानी या लेम्डासाइलोंहेथ्रिन 5%EC (कराटे, रीवा) @ 15-20ml/ 15Ltr पानी के हिसाब से छिड़के।
मकड़ी
मकड़ी पत्तों मे से रस चूसती है, नियंत्रण हेतु फेनाजाक्वीन 10EC (मेजेस्टिक, मेजीस्टार) @ 25ml/ 15Ltr पानी या 20gm डायफेन्थ्रीयुरोन 50WP (पेगासस, पजेरो) / 15ली पानी या स्पाइरोमेसिफेन 240SC (ओबेरोन) @ 18ml/15Ltr पानी या एसिफेट 50% + इमिडाक्लोप्रीड 1.8%SC (लान्सरगोल्ड) @ 50gm/ 15Ltr पानी या फ्लोनीकेमिड (उलाला) @ 6 मिली/ 15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़के।
हरी इल्ली
ये इल्ली मिर्च के फल में आधी अंदर और आधी बाहर रहकर नुकसान करती है। इल्ली नियंत्रण हेतु 2-3 ट्रेप/ एकड़ हिसाब से फेरोमेन ट्रेप लगाए। प्रभावित फलो को तोड़ कर भूमि में डालकर नष्ट करें। बुवाई के 45 दिन बाद 7 दिन के अंतर पर 6 बार खेत में छोड़े: 20000 ट्राइकोगामा / एकड़ (1 ट्राइकोकार्ड / एकड़)। रासायनिक नियंत्रण हेतु, इंडोक्साकार्ब14.5SC (सरवादा/ अवांट) @ 5ml + स्टिकर (संदोवित) @ 6ml/ 10Ltr पानी या स्पीनोसेड़ 45SC (स्पिंटोर, ट्रेसर) @ 7.5ml/15Ltr पानी या फिप्रोनिल 5SC (रीजेंट, रेबीडफेक्स) @ 30ml/15Ltr पानी या लेम्डासाइलोहेथ्रिन 5EC (कराटे, सिल्वा प्लस, रीवा 5) @ 7.5मिली/ 15 लीटर पानी या थायोडीकार्ब 75WP (लारविन, चेक) 40 ग्राम/15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़के।
पत्ते खानेवाली इल्ली
कटुवा कीट दिन मे मिट्टी में छुप जाता है और रात मे नुकसान करता है, खेत मे कुछ जगह पर सूखे घास के छोटे छोटे ढेर लगाएँ दिन में ये कीट ढेर के नीचे छुप जाये तो इसे इकट्ठा करके मार डाले। अधिक प्रकोप होने पर नियंत्रण हेतु 500 मिली फिप्रोनिल (रिजंट, सल्वो) या क्लोरोपाइरीफोस 20EC (ट्रेकडेन, फोर्स, टाफ़ाबान) @ 2 लीटर/ एकड़ के हिसाब से सिचाई के साथ दें या 150gm फिप्रोनिल + इमिडाक्लोप्रिड 80WG (लेसेंटा)/ एकड़/ 250 Ltr पानी के हिसाब से जड़ क्षेत्र में छिड़कें।
रोग नियंत्रण
पौध सड़न
इस रोग में बीज अंकुरण से पहले सड़ जाते है।
नियंत्रण:
नर्सरी लगातार एक ही जगह पर न लगाएँ।
नर्सरी की जगह ऊंचाई वाली और अच्छी नितारशक्ति वाली होनी चाहिए।
नर्सरी के लिए जगह में गर्मियों में गहरी जुताई करें।
हमेशा उठी हुई क्यारियों में पौधे लगाएँ।
नर्सरी की जगह सॉइल सोलेराइजेशन (सूर्य ताप) करें।
1 किलो बीज को 3 ग्राम थायरम या केप्टान दवा से उपचारित करे।
ग्रसित पौधे के जड़क्षेत्र में 30gm कार्बेण्डाजिम 12% + मेंकोंजेब 63%WP (सिक्सर, साफ)/ 15 Ltr पानी के हिसाब से छिड़के।
पत्तीमोड विषाणु
इस रोग का वायरस सफ़ेद मक्खी से फैलता है। थ्रिप्स व मकड़ी के नुकसान से भी ये रोग फैलता है। सफ़ेद मक्खी नियंत्रण हेतु 20gm डायफेन्थ्रीयुरोन 50WP (पेगासस, पजेरो) / 15 ली पानी या स्पाइरोमेसिफेन 240SC (ओबेरोन) @ 18ml/ 15Ltr पानी या एसिफेट 50% + इमिडाक्लोप्रीड 1.8%SC (लान्सरगोल्ड) @ 50gm/ 15Ltr पानी या फ्लोनीकेमिड (उलाला) @ 6मिली/ 15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़के।
जीवाणू पत्तीधब्बा
यह रोग सितंबर से अगस्त माह में ज्यादा दिखता है। पत्ते, तना व फल पर छोटे या बड़े धब्बे दिखते है। नियंत्रण हेतु स्ट्रेप्टोसायक्लिन @ 1gm + कॉपरऑक्सीक्लोराइड 50WP (ब्लू कोपर) @ 45gm / 15Ltr पानी के हिसाब से छिड़के।
कालवर्ण
इस रोग के प्रारम्भ में छोटी व बड़ी डालियाँ सुखने लगती है। बारिश बंद होने के बाद ठंड या पाला अधिक हो तो ये रोग अधिक दिखता है। फल पर काले गोल धब्बे पड़ते है। बुवाई से पहले बीज का 3 ग्राम थायरम या 1 ग्राम कार्बेनडाज़िम (बाविस्टीन, सहारा) / किलो बीज की दर से उपचार करें। नियंत्रण हेतु मेटालेक्सिल 8% + मेंकोजेब 64WP (रिडोमिल, संचार) @ 30gm/ 15Ltr पानी या बाइटरलेटोन 25WP (बायकोर) @ 30ग्राम/ 15लीटर पानी या क्लोरोथेलोनील 75WP @ 30 ग्राम/ 15 लीटर पानी या टेबुकोनाझोल 250EC (फोलिकुर, टोर्क) @ 15 मिली/ 15 लीटर पानी या कार्बेन्डेजीम 12% + मेंकोजेब 63%WP (साफ, कोम्बिप्लस) @ 30gm/ 15ली पानी के हिसाब से छिड़के।
गठवा कृमि
कृमि जड़ को नुकसान करने के साथ साथ कई रोगो के कारण भी है।
• अगेती नियंत्रण हेतु फसल के बीच में गेंदे की बुवाई करें और 1 टन / हेक्टर के हिसाब से नीम की खाद जमीन में डाले।
•टमाटर के साथ मिर्ची न लगाएँ।
• रासायनिक नियंत्रण हेतु फोरेट 10G @ 10-20 gm / पौधा या कार्बोफ्युरॉन 3G @ 20 - 40 ग्राम / पौधा के हिसाब से जड़ के आस पास रिंग में दे के मिट्टी से ढंके।
कटाई
अच्छी गुणवत्ता वाले फल बाजार मे भेजने के लिए कटाई जल्दी सुबह मे शुरू करें और दिन की गरमी शुरू होने से पहले पूरी करें।
फल की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए गर्मी के दिनों में दो कटाई का अंतराल कम रखें और भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए मिर्ची को डंठल के साथ तोड़ें।
फल के अच्छे विकास के लिए फलो की तुड़ाई 20-22 दिन के अंतर पर करें। कोमल मिर्ची का भंडारण समय कम होता हैं, पकी मिर्च तुड़ाई के बाद लाल हो जाती हैं।
1 Comments
WAAH BAHUT ACHHI JANKARI DI AAPNE SIR
ReplyDeletehttps://www.homegardennet.com//">मिर्च की खेती के बारे में जानकारी