वर्तमान समय में भारत में प्रदूषण जिस स्तर तक पहुंच चुका है उसका निदान का एक मात्र उपाय बचा है। आप खुब प्लांटेशन कर लीजिए । आप पर्यावरण बचाने का सैकड़ों तरीका आजमा लीजिए । हो सकता है कि सामूहिक प्रयास सें 20-30 साल में एटमॉस्फेयर की क्वालिटी में बेहद सुधार आ जाए ।लेकिन इन 20 सालों के अंदर बहुत सारे लोगों को प्रदूषण के कारण में बहुत कुछ भुगतना पड़ेगा ।
इसका साफ और स्पष्ट कारण है। पीपल बरगद और नीम जैसे ज्यादा ऑक्सीजन उत्सर्जित करने वालों पेड़ों को विकसित होने में कम से कम 20 साल का समय चाहिए होता हैं वही बास महज तीन से पांच सालों में पूर्ण विकसित हो जाता है। इसमें कार्बन सोखने की क्षमता भी बाकी पेड़ों से कहीं ज्यादा है ।तो आइए जानते हैं बास की और क्या क्या क्वालिटी है और क्यों हर इंसान को अपने आसपास ईसे लगाना ही चाहिए।
बांस एक पर्यावरण हितैषी पौधा है। यह बहुत ही परिवर्तनशील है। इसे विकसित होने में बहुत कम समय लगता है। इसे 3 से 5 साल का होने पर काट सकते हैं, जबकि अन्य पेड़ 25 से 50 साल का होने पर ही उपयोगी हो पाते हैं। यह धरती के सबसे तेजी से बढ़ने वाला पौधा है। इसकी कुछ प्रजातियाँ एक दिन में 8 से.मी. से 40 से.मी. तक बढ़ती देखी गई हैं। बढ़वार का विश्व रिकॉर्ड एक जापानी किस्म के बांस ने बनाया है, जिसने मात्र 24 घंटे में लगभग सवा मीटर की बढ़वार दिखाई। तीव्र वृद्धि के कारण लकड़ी की तुलना में इसका उत्पादन 25 गुना अधिक होता हैं। बांस की कटाई और तीन महीने के अंदर पुनः तैयार होने से पर्यावरण पर इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। बांस के बागानों में लगाई गई लागत तीन से पाँच साल में निकल आती है जबकि अन्य वृक्षों में यह अवधि लगभग 15 साल है। बांस की कटाई उसके तने के जड़ से होती है। जड़ से पुनः नया शूट निकलने से उसका थोड़े दिन बाद ही व्यावसायिक उपयोग किया जा सकता है।
पर्यावरण संरक्षण में इसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है। बांस के पौधे मिट्टी की उपजाऊ ऊपरी परत का संरक्षण करते हैं, क्योंकि इसके आपस में जुड़े हुए भूमिगत कंद भूमि की ऊपरी सतह को अपनी जगह पर मजबूती से संजोए रहते हैं। बांस की लगातार गिरती पत्तियाँ वन भूमि पर चादर-सी फैली रहती हैं, इसलिए नमी का संरक्षण भी रहता है। साथ ही तेज वर्षा के समय ये पत्तियाँ ढाल बनकर भूमि की उपजाऊ ऊपरी परत का संरक्षण करती है। बांस के पौधों में हवा में उपलब्ध कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने की अच्छी क्षमता है। इसके झुरमुट प्रकाश की तीव्रता को कम करते हैं और खतरनाक पराबैंगनी किरणों से सुरक्षा भी प्रदान करते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि बांस के पौधे अन्य वृक्षों के मुकाबले हवा में अधिक ऑक्सीजन छोड़ते हैं। बांस के पौधों में बंजर भूमि को सुधारने की अच्छी क्षमता पाई गई है। बांस के वनों को प्रकृति विज्ञानी कुदरत की प्राकृतिक सफाई प्रणाली का अंग मानते हैं, क्योंकि यह प्रदूषण को पौध-पोषकों में बदल देता है, जिससे मूल्यवान फसलें पनपती हैं। बांस ऊर्जा उत्पादन में भी अपना योगदान करता है। बांस से कागज बनाने से हरे-भरे पेड़-पौधों के विनाश पर रोक लगती है। इस प्रकार हम अनुभव कर सकते हैं कि बांस किस प्रकार पर्यावरण संरक्षण में अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहा है।