लीची और आम के लिए विख्यात बिहार अब स्ट्रॉबेरी भी उगा रहा है. ठंडे इलाकों में उगने वाले इस फल के बिहार जैसे वातावरण में उगने की कल्पना नहीं की थी लेकिन वैज्ञानिकों की कोशिश और किसानों के हौसले ने इसे मुमकिन कर दिखाया है।
ईस 🍓 फल को चाहने वाले करोड़ों हैं । हार्ट का अकार का यह खट्टा और मीठा फल का बिहारी के लोग भी दिवाने हैं। अफ़सोस ईसका प्रोडक्शन यहां नही होता था। लोगों का आयातित बासी 🍓 रास नही आती थी।
बिहार के एक छोटे से गांव चिल्हाकी बीघा वालो की करामात के कारण बिहार में भी ईसकी खेती शुरू हुई हैं।पहले यह गांव सूखा प्रभावित क्षेत्र के अंतर्गत आता था, यहां सिर्फ 60 घर हैं। यह गांव रबी, गेहूं, दालों, सरसों और सब्ज़ियों की खेती के लिए जाना जाता था। कृषि के अवसर होने के बावजूद गांव के लोग अक्सर पलायन कर जाते हैं क्योंकि उन्हें कृषि से कम ही लाभ मिल पाता है!
आज यहां जमकर 🍓 उगाई जा रही हैं।देखा देखी औरंगाबाद में ही 28 एकड़ में इसकी खेती हो रही है। नालंदा, समस्तीपुर, सुपौल और बेगूसराय में भी कुछ किसान इसकी खेती कर रहे हैं। बिहार में करीब 32 एकड़ जमीन पर स्ट्राबेरी की खेती हो रही है। एक एकड़ में पौधे लगाने से फल पैकिंग तक में करीब 9 लाख रुपए खर्च होते हैं। शुद्ध मुनाफा प्रति एकड़ 7 से 8 लाख रुपए होता है।
आईये जानते हैं 🍓 की खेती की जानकारी।
अक्टूबर में इसके लिए पौधे लगाने के साथ काम शुरू होता है. दिसंबर तक पौधे तैयार होते हैं और फिर उनमें फूल आने शुरू हो जाते हैं. इसके बाद के दो तीन महीनों में इनसे फल निकलते हैं. गर्मी आने के साथ ही पौधे सूख जाते हैं इसलिए हर साल नए पौधे लगाने पड़ते हैं.हैं.बिहार में उपजी स्ट्रॉबेरी की आसपास के इलाकों में काफी मांग है. पटना, कोलकाता और बनारस के बाजारों में ही सारी पैदावर खप जाती है. यहां स्टोरेज की सुविधा भी नहीं है इसलिए ज्यादातर स्ट्रॉबेरी तुरंत ही बेच दी जाती है. वैज्ञानिक इन्हें प्रोसेसिंग के जरिए लंबे समय तक रखने की तकनीक पर भी काम कर रहे हैं.
अधिकतर स्ट्रॉबेरी फसल मैदानी क्षेत्र में खेती की जाती है आजकल स्ट्रॉबेरी की खेती ग्रीन हाउस में में की जाती है क्योंकि ऑफ-सीजन में स्ट्रॉबेरी की कीमत अधिक मिलता है। ग्रीनहाउस में स्ट्रॉबेरी पौधे वर्षों तक बढ़ते हैं।
स्ट्रॉबेरी को खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है हालांकि कुछ किस्मों उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में बढ़ सकती फूल गठन के दौरान उन्हें लगभग दस दिनों के लिए आठ से बारह घंटे की एक फोटोपॉयर्ड सूरज की रोशनी की आवश्यकता होती है। मैदानी क्षेत्रों में सिर्फ सर्दियों में ही इसकी एक फसल ली जा सकती है। पौधे अक्टूबर.नवम्बर में लगाए जाते है। जिन्हें शीतोष्ण क्षेत्रों से प्राप्त किया जाता है। यहाँ फल फरवरी-मार्च में तैयार हो जाते है। दिसम्बर से फरवरी माह तक स्ट्राबेरी की क्यारियाँ प्लास्टिक शीट से ढँक देने से फल एक माह पहले तैयार हो जाते हैं और उपज भी 20 प्रतिशत अधिक हो जाती है। अधिक वायु वेग वाले स्थान इसकी खेती के लिये उपयुक्त नहीं
स्ट्रॉबेरी में एक रेशेदार जड़ प्रणाली है। इसलिए इसकी अधिकांश जड़ें शीर्ष मिट्टी में 15 सेमी की गहराई तक अधिकतम प्रवेश करती रहती हैं। इसलिये इसे खेती के लिए एक आर्द्र समृद्ध मिट्टी की आवश्यकता होती है। स्ट्रॉबेरी 5.0.-6.5 के पीएच के साथ थोड़ा अम्लीय मिट्टी में सबसे बढ़ता है। मिट्टी का पी.एच 4.5 और 5.5 के बीच मिट्टी में भी बढ़ सकता है। इसके लिये हल्की रेतीली से लेकर दोमट चिकनी मिट्टी में की जा सकती है लेकिन दोमट मिट्टी इसके लिये विशेष उपयुक्त मानी जाती है। अधिक लवणयुक्त तथा अपर्याप्त जल निकास वाली भूमि इसकी खेती के लिये अच्छा नहीं हैं।
इसकी खेती के लिए पहले हल चलाकर मिट्टी भुरभुरी बना ली जाती है। पहाड़ी ढलानों में सीढ़ीनुमा खेतों में क्यारियाँ 60 सेमी चौड़ी तथा खेत की लम्बाई स्थिति अनुसार तैयार की जाती है। सामान्यतः 150 सेमी लम्बे तथा 60 सेमी चौड़ी क्यारी में दस पौधे रोपे जाते हैं। खाद तथा उर्वरकों की मात्रा मिट्टी की उपजाऊ शक्ति व पैदावार पर निर्भर होती है। फिर भी क्यारियों में अच्छी तरह गली-सड़ी 10-15 किलोग्राम गोबर की खाद और 50 ग्राम उर्वरक मिश्रण जिसमें सुपर फास्फेट और म्युरेट ऑफ पोटाश 22.1 के अनुपात में देनी चाहिए। इस मिश्रण को मार्च तथा अगस्त माह में दिया जाता है। मैदानी क्षेत्रों में इसकी खेती 60.75 सेमी चौड़ाई वाली लम्बी क्यारियाँ बनाककर जिसमें दो कतारें लगाई जा सकें या मेढ़े बनाकर उसी प्रकार की जा सकती है जिस प्रकार टमाटर या अन्य सब्जियाँ उगाई जा सकती हैं।
पौधे लगाने की विधि
शरद ऋतु के दौरान स्ट्रॉबेरी की अधिकतम वृद्धि होती है। जब सर्दियों में प्रवेश होता है तो यह निष्क्रिय हो जाता है। सर्दियों के बाद यह वसंत ऋतु के दौरान फूलना शुरू कर देता है। इसलिएए स्ट्रॉबेरी आमतौर पर सितंबर से अक्टूबर महीने के दौरान लगाये जाते हैं। शुरुआती वृक्षारोपण के परिणामस्वरूप कम पैदावार होगी क्योंकि इस तरह के पौधों में ताकत नहीं है। पहाड़ी क्षेत्रों में पौधे अगस्त-सितम्बर तथा मैदानी क्षेत्रों में अक्टूबर से नवम्बर तक लगाए जाते हैं। पौधे किसी प्रमाणित व विश्वस्त नर्सरी से ही लिये जाने चाहिए जिससे इसकी जाति की जानकारी मिले और रोग रहित भी हों। पौधे लगाने से पहले पुराने पत्ते निकाल दिये जाने चाहिए और एक दो नए उगने वाले पत्ते ही रखने चाहिए। क्यारियों में कतार.से.कतार तथा पौधे.से.पौधे का अन्तर 30 सेमी रखना चाहिए है। पौधा लगाने के समय क्यारियों में लगभग 15 सेमी गहरा छोटा गड्ढा बनाकर पौधा लगाकर उपचारित जड़ों के इर्द.गिर्द को अच्छी तरह दबा दिया जाता है ताकि जड़ों तथा मिट्टी के बीच वायु न रहे। पौधे लगाने के बाद हल्की सिंचाई आवश्यक है।
तुड़ाई
फरवरी के आखिरी सप्ताह से मार्च माह तक मैदानी क्षेत्रों में फल पकने शुरू हो जाते हैं। पकने के समय फलों का रंग लाल होने लगता है। जब फल का आधा से भाग लाल रंग का हो जाए तो तुड़ाई कर लेनी चाहिए। फलों की तुड़ाई विशेष सावधानी तथा कम गहरी टोकरियों से ही करनी चाहिए। तुडाई करते समय रोग क्षति पौधों की छांटाई कर देनी चाहिए।
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