मटर
मटर को सर्दी के मौसम में उगाया जाता है। मटर का सब्जियों में एक महत्वपूर्ण स्थान है । सर्दियां शुरू होते ही बाजारों में मटर बिकने लगती है। मटर को डिब्बो में पैक करके भी बेचा जाता है। इसकी खेती हरी फली और दाल प्राप्त करने के लिए की जाती है। मटर की दाल की जरूरत को पूरा करने के लिए पीले मटर की खेती की जाती हैं।
इसकी बीज अंकुरण के लिये औसत 20 से 22 डिग्री सेल्सियस और अच्छी वृद्धि तथा पौधों के विकास के लिये 10 से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है। ज़्यादातर बुवाई अक्तूबर और नवम्बर की जाना उचित हैं। अच्छी फसल के लिए मिटटी का पीएच मान 6.5 से 7.5 योग्य माना जाता हैं।
किसमे कोनसी मशहूर हैं?
अंबिका, इंद्रा (के पी एम आर- 400), आदर्श (आई पी एफ- 99-25), जय (के पी एम आर- 522), पंत मटर- 42, के एफ पी- 103, उत्तरा (एच एफ पी- 8909), डी डी आर- 27 (पूसा पन्ना), हरीयाल (एच एफ पी- 9907 बी),पंत मटर- 42 प्रकाश (आई पी एफ डी-1-10), मालवीय मटर (एच यू डी पी- 15), विकास, सपना, (के पी एम आर- 1441),वी एल मटर 42 इनके अलावा और भी कई मशहूर आपके पसंद की आप चुन सकते है।
रोग व कीटक और उनका निवारण-
*तना मक्खी-
इसका प्रकोप अगेती किस्म में अधिक होता है। पौधे बढ़ते नहीं है तथा सूख जाते हैं| उनके प्रकोप से बचने के लिए 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से कार्बोफ्यूरान 3 जी नामक रसायन को बुवाई से पूर्व अंतिम जुताई के समय खेत में डाल देना चाहिए।
*मृदुरोमिल फफूंद-
यह बीमारी पत्तियों की निचली सतह पर लगती है। इसके निवारण के लिए 3 किलोग्राम सल्फर 80 प्रतिशत डब्ल्यू पी या डाइनोकेप 48 प्रतिशत ई सी 2 लीटर दवा को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें।
*चूर्णी फफूंद-
इस रोग से फसल को अधिकतम हानि होती है। नम वातावरण में यह रोग अधिक तेजी से लगता है, जिसके कारण तने और पत्तियों पर सफेद चूर्ण जमा हो जाता है। इसका निवारण सावधानी के लिए ठण्डा एवं नम वातावरण होते ही एक छिडकाव डाइनोकप 48 प्रतिशत ई सी 400 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर 1000 लीटर पानी में मिलाकर अवश्य छिड़क दें। यदि लक्षण फिर भी दिखाई दे तो 15-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव अवश्य करना चाहिए।
पोस्ट पसंद आए तो लाइक शेर/ सांझा कीजिये।
मटर को सर्दी के मौसम में उगाया जाता है। मटर का सब्जियों में एक महत्वपूर्ण स्थान है । सर्दियां शुरू होते ही बाजारों में मटर बिकने लगती है। मटर को डिब्बो में पैक करके भी बेचा जाता है। इसकी खेती हरी फली और दाल प्राप्त करने के लिए की जाती है। मटर की दाल की जरूरत को पूरा करने के लिए पीले मटर की खेती की जाती हैं।
इसकी बीज अंकुरण के लिये औसत 20 से 22 डिग्री सेल्सियस और अच्छी वृद्धि तथा पौधों के विकास के लिये 10 से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है।बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है। ज़्यादातर बुवाई अक्तूबर और नवम्बर की जाना उचित हैं। अच्छी फसल के लिए मिटटी का पीएच मान 6.5 से 7.5 योग्य माना जाता हैं।
किसमे कोनसी मशहूर हैं?
अंबिका, इंद्रा (के पी एम आर- 400), आदर्श (आई पी एफ- 99-25), जय (के पी एम आर- 522), पंत मटर- 42, के एफ पी- 103, उत्तरा (एच एफ पी- 8909), डी डी आर- 27 (पूसा पन्ना), हरीयाल (एच एफ पी- 9907 बी),पंत मटर- 42 प्रकाश (आई पी एफ डी-1-10), मालवीय मटर (एच यू डी पी- 15), विकास, सपना, (के पी एम आर- 1441),वी एल मटर 42 इनके अलावा और भी कई मशहूर आपके पसंद की आप चुन सकते है।
रोग व कीटक और उनका निवारण-
*तना मक्खी-
इसका प्रकोप अगेती किस्म में अधिक होता है। पौधे बढ़ते नहीं है तथा सूख जाते हैं| उनके प्रकोप से बचने के लिए 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से कार्बोफ्यूरान 3 जी नामक रसायन को बुवाई से पूर्व अंतिम जुताई के समय खेत में डाल देना चाहिए।
*मृदुरोमिल फफूंद-
यह बीमारी पत्तियों की निचली सतह पर लगती है। इसके निवारण के लिए 3 किलोग्राम सल्फर 80 प्रतिशत डब्ल्यू पी या डाइनोकेप 48 प्रतिशत ई सी 2 लीटर दवा को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें।
*चूर्णी फफूंद-
इस रोग से फसल को अधिकतम हानि होती है। नम वातावरण में यह रोग अधिक तेजी से लगता है, जिसके कारण तने और पत्तियों पर सफेद चूर्ण जमा हो जाता है। इसका निवारण सावधानी के लिए ठण्डा एवं नम वातावरण होते ही एक छिडकाव डाइनोकप 48 प्रतिशत ई सी 400 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर 1000 लीटर पानी में मिलाकर अवश्य छिड़क दें। यदि लक्षण फिर भी दिखाई दे तो 15-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव अवश्य करना चाहिए।
पोस्ट पसंद आए तो लाइक शेर/ सांझा कीजिये।
0 Comments