बैगन
बैंगन भारत का देशज है। प्राचीन काल से भारत से इसकी खेती होती आ रही है। ऊँचे भागों को छोड़कर समस्त भारत में यह उगाया जाता है। देश में इसकी खेती की जा सकती है। क्यों की भारत की जलवायु गर्म होती है और बैगन के खेती क लिए उपयुक्त रहती है। वैसे तो इस फसल को पुरे वर्ष में सभी ऋतुओ में लगाया जा सकता है। नर्सरी मई-जून में करने पर बुआई एक या डेढ़ माह में यानि जून या जुलाई तक कर सकते है।जो नर्सरी नवम्बर में लगाते है उसे जनवरी में शीत लहर और पाले का प्रकोप से बचा कर लगा सकते है।जो नर्सरी फरवरी और मार्च में लगाते है उसे मार्च लास्ट और अप्रैल तक की जा सकती है। बैंगन कई प्रकार के, छोटे से लेकर बड़े तक गोल और लंबे भी, होते हैं।
बैगन की कुछ मशहूर प्रजातीया:-
गोल गहरा बैंगनी, लंबा बैंगनी, लंबा हरा, गोल हरा, हरापन लिए हुए सफेद, सफेद, छोटा गोल बैंगनी रंगवाला, वामन बैंगन, ब्लैकब्यूटी , गोल गहरे रंग वाला, मुक्तकेशी, रामनगर बैंगन, गुच्छे वाले बैंगन आदि। बैंगन सोलेनेसी कुल के सोलेनम मेलोंगना के अंतर्गत आता है। इसके विभिन्न किस्म वेरएसक्यूलेंटम, वेर सर्पेटिनम और वेर डिप्रेस्सम जातियों है।
बैगन पर पड़नेवाले कुछ आम रोग एवं उनका निवारण:
*बैंगन के फल और प्ररोह छिद्रक-
ल्युसिनोड आर्वोनेलिस एक पतिंगा होता है, जिसकी सूंडी छोटे तनों और फलों में छेद कर अंदर चली जाती है। इससे पेड़ मुरझाकर सूख जाते हैं। फल खाने योग्य नहीं रह जाता और कभी कभी सड़ जाता है। इसकी रोकथाम के लिए रोगग्रस्त तनों को तुरंत काटकर हटा देना और उसे जला देना चाहिए। रोपनी के पहले यदि पौधों पर कृमिनाशक धूल छिड़क दी जाए, तो उससे भी सूंडी का असर नहीं होता। एक मास के अंतराल पर फसल पर कृमिनाशक औषधि का छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव के पूर्व रोगग्रस्त भाग को काटकर, निकालकर जला देना चाहिए। बैंगन की फसल के समाप्त हो जाने पर उसके ठूँठ में आग लगाकर जला देना चाहिए और एक वर्ष तक उसमें बैंगन की फसल न बोनी चाहिए।
*बैंगन के तने का छिद्रक-
यूज़ोफेरा पार्टिसेला नामक पतिंगे की सूँडी तने में छेद कर प्रवेश कर जाती और उसका गुदा खाती है, जिससे पौधों का बढ़ना रुक जाता और आक्रांत भाग सूख जाता है। इसके निवारण का उपाय भी वही है जो ऊपर दिया हुआ है।
*एपिलेछुआ बीटल्स-
एपिलेछुआ बीटल्स नामक जंतु पौधों की नई और प्रौढ़ पत्तियों को खाते हैं। इनकी रोकथाम के लिए पौधों के आकार के अनुसार ५ प्रतिशत बी. एच. सी. धूलन का प्रति एकड़ १० से २० पाउंड की दर से, अथवा 'पाइरोडस्ट ४,०००' का प्रति एकड़ १०-१५ पाउंड की दर से छिड़काव किया जा सकता है।
*फोमोस्पिस जुलसा रोग-
यह रोग फोमोस्पिस वेकसेन्स नमक कवक द्वारा उत्पन्न होता है। यह बैगन का एक भयंकर और हानिकारक रोग हैं । इस रोग मे पौधो के पत्तियों पे छोटे गोल भूरे रंग के धब्बे बन जाते है। इस रोग मे पट्टीय पीली पद जाती है। इस रोग के निवारण हेतु पौधो को ०.२ प्रतिशत कैप्टान का ७-८ दिन मे छिड़काव कर रोगमुक्त कर सकते है। रोगग्रस्त पौधो को उखाड़ फेके और जला डाले।
कुछ खास नियम जब आप बैगन की खेती कर रहे हो तो-
*एक बार जिस खेत मे बैगन की खेती की हैं वह दोबारा खेती नहीं करे।
* अगर आप उसी खेत मे दोबारा बैगन की खेती करने जा रहे हो तो पुराने फसल के अवशेषों को उखाड़कर उन्हे अन्यत्र जगह जला दे।
* बैगन की नर्सरी के लिए ऊंची गद्देदार क्यारिया बनाई जाए।
*आप जून मे बुवाई करने जा रहे हो तो खेत को गर्मियों मे गहरी जुताई करनी चाहिए ताकि सूरज की तपन से रोग किटक नष्ट हो जाए।
कही जगह रोग एवं किटक निवारण/प्रतिबंध हेतु जैविक तरह से भी उपाय किए जाते है जैसे की छाछ, लहसुन-मिर्च का पानी, जीवामृत और गोमूत्र इ. आप अपने नजदीकी या कसबे मे कोई किसान ने प्रयोग किया है यह खोज करे और उनकी सलाह और अनुभव से इन चीजों का उपयोग करे।
इसके अलावा अन्य और भी रोग होते है आप अपने सूझबुझ तथा अध्ययन से जानकारी प्राप्त कर सकते है तथा, आपको अन्य रोग और उपाय पता है तो कमेन्ट कीजिये ताकि सारे किसानो को ज्ञान प्राप्त हो सके।
पोस्ट पसंद आए तो सांझा कीजिये।
बैंगन भारत का देशज है। प्राचीन काल से भारत से इसकी खेती होती आ रही है। ऊँचे भागों को छोड़कर समस्त भारत में यह उगाया जाता है। देश में इसकी खेती की जा सकती है। क्यों की भारत की जलवायु गर्म होती है और बैगन के खेती क लिए उपयुक्त रहती है। वैसे तो इस फसल को पुरे वर्ष में सभी ऋतुओ में लगाया जा सकता है। नर्सरी मई-जून में करने पर बुआई एक या डेढ़ माह में यानि जून या जुलाई तक कर सकते है।जो नर्सरी नवम्बर में लगाते है उसे जनवरी में शीत लहर और पाले का प्रकोप से बचा कर लगा सकते है।जो नर्सरी फरवरी और मार्च में लगाते है उसे मार्च लास्ट और अप्रैल तक की जा सकती है। बैंगन कई प्रकार के, छोटे से लेकर बड़े तक गोल और लंबे भी, होते हैं।
बैगन की कुछ मशहूर प्रजातीया:-
गोल गहरा बैंगनी, लंबा बैंगनी, लंबा हरा, गोल हरा, हरापन लिए हुए सफेद, सफेद, छोटा गोल बैंगनी रंगवाला, वामन बैंगन, ब्लैकब्यूटी , गोल गहरे रंग वाला, मुक्तकेशी, रामनगर बैंगन, गुच्छे वाले बैंगन आदि। बैंगन सोलेनेसी कुल के सोलेनम मेलोंगना के अंतर्गत आता है। इसके विभिन्न किस्म वेरएसक्यूलेंटम, वेर सर्पेटिनम और वेर डिप्रेस्सम जातियों है।
बैगन पर पड़नेवाले कुछ आम रोग एवं उनका निवारण:
*बैंगन के फल और प्ररोह छिद्रक-
ल्युसिनोड आर्वोनेलिस एक पतिंगा होता है, जिसकी सूंडी छोटे तनों और फलों में छेद कर अंदर चली जाती है। इससे पेड़ मुरझाकर सूख जाते हैं। फल खाने योग्य नहीं रह जाता और कभी कभी सड़ जाता है। इसकी रोकथाम के लिए रोगग्रस्त तनों को तुरंत काटकर हटा देना और उसे जला देना चाहिए। रोपनी के पहले यदि पौधों पर कृमिनाशक धूल छिड़क दी जाए, तो उससे भी सूंडी का असर नहीं होता। एक मास के अंतराल पर फसल पर कृमिनाशक औषधि का छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव के पूर्व रोगग्रस्त भाग को काटकर, निकालकर जला देना चाहिए। बैंगन की फसल के समाप्त हो जाने पर उसके ठूँठ में आग लगाकर जला देना चाहिए और एक वर्ष तक उसमें बैंगन की फसल न बोनी चाहिए।
*बैंगन के तने का छिद्रक-
यूज़ोफेरा पार्टिसेला नामक पतिंगे की सूँडी तने में छेद कर प्रवेश कर जाती और उसका गुदा खाती है, जिससे पौधों का बढ़ना रुक जाता और आक्रांत भाग सूख जाता है। इसके निवारण का उपाय भी वही है जो ऊपर दिया हुआ है।
*एपिलेछुआ बीटल्स-
एपिलेछुआ बीटल्स नामक जंतु पौधों की नई और प्रौढ़ पत्तियों को खाते हैं। इनकी रोकथाम के लिए पौधों के आकार के अनुसार ५ प्रतिशत बी. एच. सी. धूलन का प्रति एकड़ १० से २० पाउंड की दर से, अथवा 'पाइरोडस्ट ४,०००' का प्रति एकड़ १०-१५ पाउंड की दर से छिड़काव किया जा सकता है।
*फोमोस्पिस जुलसा रोग-
यह रोग फोमोस्पिस वेकसेन्स नमक कवक द्वारा उत्पन्न होता है। यह बैगन का एक भयंकर और हानिकारक रोग हैं । इस रोग मे पौधो के पत्तियों पे छोटे गोल भूरे रंग के धब्बे बन जाते है। इस रोग मे पट्टीय पीली पद जाती है। इस रोग के निवारण हेतु पौधो को ०.२ प्रतिशत कैप्टान का ७-८ दिन मे छिड़काव कर रोगमुक्त कर सकते है। रोगग्रस्त पौधो को उखाड़ फेके और जला डाले।
कुछ खास नियम जब आप बैगन की खेती कर रहे हो तो-
*एक बार जिस खेत मे बैगन की खेती की हैं वह दोबारा खेती नहीं करे।
* अगर आप उसी खेत मे दोबारा बैगन की खेती करने जा रहे हो तो पुराने फसल के अवशेषों को उखाड़कर उन्हे अन्यत्र जगह जला दे।
* बैगन की नर्सरी के लिए ऊंची गद्देदार क्यारिया बनाई जाए।
*आप जून मे बुवाई करने जा रहे हो तो खेत को गर्मियों मे गहरी जुताई करनी चाहिए ताकि सूरज की तपन से रोग किटक नष्ट हो जाए।
कही जगह रोग एवं किटक निवारण/प्रतिबंध हेतु जैविक तरह से भी उपाय किए जाते है जैसे की छाछ, लहसुन-मिर्च का पानी, जीवामृत और गोमूत्र इ. आप अपने नजदीकी या कसबे मे कोई किसान ने प्रयोग किया है यह खोज करे और उनकी सलाह और अनुभव से इन चीजों का उपयोग करे।
इसके अलावा अन्य और भी रोग होते है आप अपने सूझबुझ तथा अध्ययन से जानकारी प्राप्त कर सकते है तथा, आपको अन्य रोग और उपाय पता है तो कमेन्ट कीजिये ताकि सारे किसानो को ज्ञान प्राप्त हो सके।
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