प्‍याज की खेती



प्याज की खेती भारत के सभी भागों मे सफलता पूर्वक की जाती है। प्याज एक नकदी फसल है जिसमें विटामिन सी, फास्फोरस आदि पौष्टिक तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इसका प्याज का उपयोग सलाद, सब्जी, अचार एवं मसाले के रूप में किया जाता है। भारत में रबी और खरीफ दोनो ऋतूओं मे प्‍याज उगाया जा सकता है।प्याज की फसल के लिए ऐसी जलवायु की अवश्यकता होती है जो ना बहुत गर्म हो और ना ही ठण्डी। अच्छे कन्द बनने के लिए बड़े दिन तथा कुछ अधिक तापमान होना अच्छा रहता है। आमतौर पर सभी किस्म की भूमि में इसकी खेती की जाती है, लेकिन उपजाऊ दोमट मिट्टी, जिसमे जीवांश खाद प्रचुर मात्रा में हो व जल निकास की उत्तम व्यवस्था हो, सर्वोत्तम रहती है।



भूमि अधिक क्षारीय व अधिक अम्लीय नहीं होनी चाहिए अन्यथा कन्दों की वृद्धि अच्छी नहीं हो पाती है। अगर भूमि में गंधक की कमी हो तो ४०० किलो जिप्सम प्रति हेक्टर की दर से खेत की अन्तिम तैयारी के समय कम से कम १५ दिन पूर्व मिलायें।
प्याज के आम रोग,किटक और उनका निवारण कैसे करे?
*भूरा विगलन रोग-
यह रोग स्यूडोमोनास ऐरूजिनोसा नामक जीवाणु से होता है| यह रोग आमतौर पर प्याज भण्डारण के समय में लगता है| इस बीमारी का प्रकोप प्याज के कंदों के गर्दन वाले भाग से शुरू होता है, जो बाद में सड़कर गंध करने लगता है|इसके नियंत्रण के उपाय के लिए प्याज की खुदाई करने के उपरांत इसे अच्छी प्रकार से सुखा लेना चाहिए तथा भण्डारण कम नमी व हवादार कमरे में करना चाहिए।



*झुलसा रोग (स्टैम्फीलियम ब्लाइट)- यह रोग स्टेमफीलियम बेसिकेरियम नामक कवक द्वारा फैलता है। इस रोग का प्रकोप होने पर पत्तियों की शुरू की अवस्था पर एक तरफ सफेद पीली हो जाती है तथा दूसरी तरफ पत्तियां हरी होती है और प्रकोप ज्यादा होने पर भूरी होकर काली हो जाती है। इसका निवारण के उपाय रोगग्रस्त फसल अवशेषों को एकत्र करके जला देना चाहिए| प्याज में रोग नियंत्रण हेतु प्रतिरोधी प्रजातियों का चुनाव करें| प्याज बीज का उपचार करना चाहि। इस रोग की रोकथाम के लिए डाइथेन एम- ४५ का ०.२५ प्रतिशत घोल बनाकर उसमें चिपकने वाले पदार्थ सैंडोविट का ०.०१ प्रतिशत मात्रा मिलाकर १० से १५ दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।



*जीवाणु मृदु विगलन-
यह रोग इर्विनिया कैरोटोवोरा नामक जीवाणु से होता है। इस रोग के संक्रमण से पत्तियाँ पीली पडने लगती है तथा ऊपर से नीचे की तर सूखने लगती है| अधिक संक्रमण होने पर पौध १ सप्ताह में सूख जाती है। इस रोग से प्याज बीज फसल में अधिक नुकसान होता है। इस रोग निवारण के उपाय के लिए स्वस्थ नर्सरी की रोपाई करनी चाहिए| इस प्याज में रोग के लक्षण दिखने पर एन्टीबायोटिक स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का २०० पीपीएम पानी के घोल का छिडकाव करें। जैव नियंत्रक जीवाणु स्यूडोमोनास फ्लूओरिसेन्स की ५.० किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के पूर्व खेत मिला देना चाहिए।
*बैगनी धब्बा (पर्पल ब्लाच)-
आमतौर पर यह बीमारी प्याज उगाने वाले सभी क्षेत्रों में पायी जाती है। यह रोग फंफूद (अल्टरनेरिया पोरी) से होता हैं| यह रोग प्याज की पत्तियों, तनों और डंठलों पर लगती हैं। रोग ग्रस्त भाग पर सफेद भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, जिनका मध्य भाग बाद में बैंगनी रंग का हो जाता है। इस रोग से भंडारण के समय में प्याज सड़ने लगती है, जिससे भारी क्षति होती है। इस रोग के नियंत्रण के उपायके लिए प्याज में रोग नियंत्रण हेतु प्रतिरोधी प्रजाति के बीज का प्रयोग करना चाहिए। प्याज की बुवाई से पूर्व प्याज के बीज को थीरम २.५ ग्राम प्रति किलोग्राम से शोधित करना चाहिए।इस रोग का प्रकोप मुख्य खेत में होने पर क्लोरोथैलोनिल ७५ प्रतिशत की २ ग्राम मात्रा का डाइथेन एम- ४५ की २.५ गाम मात्रा प्रति लीटर पानी के साथ ०.०१ सैंडोविट या कोई चिपचिपा पदार्थ अवश्य मिलाकर १० दिन के अंतराल पर 3 से 4 छिड़काव करना चाहिए।
इसके अलावा अन्य और भी रोग होते है आप अपने सूझबुझ तथा अध्ययन से जानकारी प्राप्त कर सकते है तथा, आपको अन्य रोग और उपाय पता है तो कमेन्ट कीजिये ताकि सारे किसानो का ज्ञान प्राप्त हो सके।
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