टमाटर



टमाटर पूरे वर्ष मे आनेवाली फसल है। यह की फसल पाला नहीं सहन कर सकती है। इसकी खेती हेतु आदर्श तापमान 18 से 27 डिग्री से.ग्रे. है। 21-24 डिग्री से.ग्रे तापक्रम पर टमाटर में लाल रंग सबसे अच्छा विकसित होता है। इन्हीं सब कारणों से सर्दियों में फल मीठे और गहरे लाल रंग के होते हैं। तापमान ३८ डिग्री से.ग्रे से अधिक होने पर अपरिपक्व फल एवं फूल गिर जाते हैं। उचित जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि जिसमे पर्याप्त मात्रा मे जीवांश उपलब्ध हो।



टमाटर की मशहूर प्रजातीया:
पूसा गौरव, सलेनगोला, साले नाबदा, आजाद टी-2 , पूसा शीतल, अर्का विकास पंत टी-3, अर्का सौरभ और अन्य प्रजतीया जो संकर की है जैसे रूपाली, अविनाश-2, मनीषा, वैशाली, रक्षिता, अरकरक्षक, पूसा हाइब्रिड-4 और अन्य आपके कसबे में अच्छी प्रजाती आपको पसंद आए।
कब करे नर्सरी?
नर्सरी जनवरी-फरवरी मे की हो तो रोपाई मार्च-अप्रैल मी की जाए और मई-जून की नर्सरी की रोपाई जून-जुलाई मे की जानी चाहिए।
टमाटर मे पड़ने वाले रोग एवं उनका निवारण-



*राइजोक्टोनिया-
फल सड़न करनेवाली खरीफ मौसम की टमाटर को लगनेवाली खतरनाक बीमारी है। इस बीमारी मे फल का निचली सतह पर गोलाकार सड़न आगे बढ़ती जाती है। बाद मे इस सड़न पर दरारे पड़ जाती है। सफ़ेद और काले रंग के तमाम स्पोरोडोकिया इन छल्लो पर दिखाई देती हैं, जो गीले होते है। खयाल रखें कि फल मिट्टी को न छूने पाएं, इस के लिए पौधों के साथ लकड़ी के डंडे बांध दें। खेत में सिंचाई का पानी अधिक समय तक न रुकने दें। फसल की बोआई से पहले खेत में हरी खाद की फसल को बो कर खेत में उलट दें ।खेत की तैयारी के समय 5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें। सभी सड़े फलों को इकट्ठा कर के नष्ट करें ताकि रोग न फैले।



*जीवाणु धब्बा रोग –
इस रोग का प्रकोप पूरे भारत देश में होता है। इस रोग मे छोटे धब्बे रोपाई से पहले पौधों की पत्तियों पर दिखाई देते हैं। बाद में धब्बे इकट्ठे हो कर पौधों की पत्तियों को जला देते हैं। इस रोग का असर खरीफ मौसम में ज्यादा होता है।बोआई से पहले बीजों को स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के 100 पीपीएम घोल में डुबोएं। इस रोग निवारण हेतु खेत की गरमी में जुताई करें। स्वस्थ्य बीजों का इस्तेमाल करें। शाम के समय स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का छिड़काव 150 से 200 पीपीएम के घोल द्वारा करें व इस के बाद कापर आक्सीक्लोराइड के 0.2 फीसदी घोल का छिड़काव करें।
*अगेती झुलसा –
यह रोग अल्टरनेरिया सोलेनाई नामक फफूंद से फैलता है। इस के हमले के बाद पुरानी पत्तियों पर चकत्ते पड़ जाते हैं। जैसे ही पत्तियों पर रोग के लक्षण दिखाई दें, फौरन क्लोरोथालोनिक के 0.2 फीसदी घोल का छिड़काव 8 दिनों के अंतर पर करें। बचाव के लिए ब्लाइटाक्स 50 नामक दवा के 0.25 फीसदी घोल का छिड़काव करना चाहिए। प्रतिरोधी किस्म कल्याणपुर सलेक्शन १ का इस्तेमाल करना चाहिए।
इसके अलावा अन्य और भी रोग होते है आप अपने सूझबुझ तथा अध्ययन से जानकारी प्राप्त कर सकते है तथा, आपको अन्य रोग और उपाय पता है तो कमेन्ट कीजिये ताकि सारे किसानो का ज्ञान प्राप्त हो सके।
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