राजस्थान के तरंजन चौधरी ने अपनी महनत और लगन से बाड़मेर राजस्थन के रेतीले इलाकों में उन फलों को उगाया है जो पहले सिर्फ विदेशी जमीन पर उगते थे।
तरंजन चौधरी की बदौलत बाड़मेर आज इन पौधों की नर्सरी का हब बन चुका है। तरंजन विदेशों से इन पौधों को लाकर देश के कई अन्नय राज्यों में किसानों को दे रहे हैं।कई पौधों के तो वो भारत में अकेले सप्लायर हैं। इससे तरंजन को तो सालाना करोड़ों की आमदनी होती ही है।साथ देश के किसान भी विदेशी फलो के पौधे लगाकर लाखो कमा रहे है।
तरंजन चौधरी राजस्थान के बाड़मेर जिले के रहने वाले है।
तरंजन ने छह साल पहले एक खबर में विदेशों मे पौधारोपण की कई नयी किस्मों के बारे में पढ़ा, जिसमे उन्होंने थाई एप्पल बेर, ग्राफ्टेड चीकू, ग्राफ्टेड आम, अंजीर, पिस्ता, थाई अमरुद, बिना बीज नींबू, गुग्गल, ड्रैगन, अनार, कलमी गुन्दा, हाइब्रिड शीशम, एस मोगी, दिव्य चन्दन की तमाम नयी किस्मों के बारे में जाना।
ये नयी किस्में उनके अपने ही शहर में पैदा हों इसके लिए उन्होंने कई संस्थानों में जाकर प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। तरंजन चौधरी बताते हैं, विदेशों में उगने वाले पौधों की बागवानी से अच्छी कमाई तो हो सकती थी, लेकिन हमारे लिये ये जानना जरुरी था कि हमारे देश की जलवायु में ये पौधे पनपेंगे या नहीं? इसलिए हमने 2010 में देश के 120 इलाकों की मिट्टी, बारिश और समुद्र के पानी के सैंपल की जांच कराई। जांच बाद हमें पता चला कि ये फल हमारे देश की जलवायू में पैदा हो सकते हैं।"
वो आगे बताते हैं, सैंपल के तौर पर हमने कुछ पौधे इजराइल,थाईलैंड, कैलोफोर्नियाँ से मंगाना शुरू कर दिया, प्रयोग सफल रहा तो फिर इसी काम को शुरु कर दिया। अब मैं नर्सरी का स्टॉक करता हूं, विदेशों से पौधे मंगवाता हूं और उन्हें देश के कोने-कोने में किसानों को भेजता हूं।"
तरंजन चौधरी द्वरा लाई गयी इन नयी प्राजातियों में एक प्रजाति एप्पल बेर की है, जिसे इस वक्त लगाया जा सकता है। थाईलैंड के इस पौधे को जून से लेकर दिसंबर तक कभी भी लगाया जा सकता हैं। राजस्थान में इस समय एप्पल बेर की खेती लगभग 500 हेक्टेयर भूमि पर हो रही है। एप्पल बेर का पौधा -5 डिग्री से 55 डिग्री तक का तापमान सहन करने की क्षमता रखता है।
तरंजन बताते हैं, एक बार एप्पल बेर लगाने के बाद पचास साल तक इससे आमदनी की जा सकती है। खेत में पौधा लगाने के 14 महीने बाद पौधे पर फल आने शुरू हो जाते हैं। पहले साल थोड़ा कम पैदावार होती है लेकिन दूसरी और तीसरी साल से पैदावार मे बढोतरी होने के साथ किसान लाखों रुपए सालाना कमा सकते हैं।
उत्तरप्रदेश में एप्पल बेर की खेती के बारे में पूछने पर तरंजन सिंह के भाई घेवर सिंह बताते हैं कि बाग लगाई जा सकती है लेकिन खर्च थोड़ी ज्यादा आता है। अगर राजस्थान में एक बीघे में 20 हजार का खर्च आता है तो यूपी में 50 हजार खर्च आएगा। इस बाग से पहले साल 30 हजार,दूसरे और तीसरे साल में दो से ढाई लाख का मुनाफा हो सकता है।
फलदार पौधों के साथ-साथ तरंजन फर्नीचर में इस्तेमाल होने वाले पौधे भी विदेशो से मंगाने लगे हैं। पेशे से कंप्यूटर शिक्षक उनके भाई घेवर सिंह राजपुरोहित भी इसी पेशे में हाथ आजमा रहे हैं। घेवर सिंह बताते हैं कि भारत में पहली बार कैलीफोर्निया और थाई लैब द्वारा तैयार एन्टीडिजीज,एन्टीक्लाईमेट, हाईब्रिड किस्म, टिश्यू कल्चर, ग्राफ्टेड और उच्च तकनीक से तैयार फलों एवं इमारती लकड़ी के पौधों की नर्सरी तैयार की है। वो अपनी नर्सरी के इन पौधों को महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, मध्प्रदेश और दिल्ली भेजते हैं।
कैसे लगाएं एप्पल बेर का बाग
जून के महीने से लेकर दिसम्बर महीने तक खेत में एप्पल बेर किसी भी समय लगाया जा सकता हैं। 15/13 के हिसाब से गढ्ढे से गढ्ढे की दूरी,2/2 का गढ्ढा खोदना हैं। 8-10 दिन तक इसे खुला छोड़ने के बाद इसमे एप्पल बेर के पौधे लगा सकते हैं। एक बीघे में 100 पौधे लगाये जा सकते हैं। एक पौधे की कीमत 140 रुपये है। पौधे को पानी और खाद आदि देने के लिए टिप्स तरंजन की टीम आजीवन किसानों को देगी। थाई एप्पल बेर में कांटे नहीं होते हैं। इसमें 11 से 14वें महीने में उत्पादन शुरू हो जाता है। सेब जैसे स्वाद वाले इस फल का वजन 100 ग्राम तक होता है। महाराष्ट्र में इस फल की औसत कीमत 40-45 रुपये प्रति किलो है।
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