भारत में पाई जाने वाली देसी नस्ल की कुछ 37 प्रजातियों में से एक प्रजाति है बाचौर। खास बात यह है कि इसकी उत्पत्ति अपने बिहार से हुई है । गंगा तिरी गाय के अलावे बाचौर ऐसी दूसरी प्रजाति है जिसकी उत्पत्ति बिहार से हुई है।
अतः हम बिहारियों के लिए इन गायों का दूध सर्वश्रेष्ठ है।
अतः हम बिहारियों के लिए इन गायों का दूध सर्वश्रेष्ठ है।
बाचौर की उत्पत्ति उत्तर बिहार के मधुबनी, दरभंगा और सीतामढ़ी जिले में हुई है।ईसका शरीर कसा हुआ होता हैं एवं आकार छोटा होता हैं। बाचौर हरियाणवी मवेशियों के साथ घनिष्ठ समानता प्रदर्शित करते हैं। भारत की अन्य नस्लों की तुलना में यह गाय बेहतर दूध देने वाली होती हैं और ईन्हें नियमित प्रजनन चक्र के लिए जाना जाता है। अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के दिनों में मवेशी कथित तौर पर बिहार में व्यापक रूप से लोकप्रिय थी।
बचौर का रंग अमूमन सफेद होता है ।ये सीधे पीठ, अच्छी तरह से गोल बैरल, छोटी गर्दन और मांसपेशियों के कंधों के साथ कॉम्पैक्ट हैं। माथा चौड़ा और सपाट या थोड़ा उत्तल होता है। आँखें बड़ी और प्रमुख हैं। सींग मध्यम आकार के और टेढ़े-मेढ़े होते हैं, बाहर की ओर, ऊपर और नीचे की ओर घुमावदार होते हैं। ईस नस्ल के बैल का उपयोग मुख्य रूप से काम के लिए किया जाता है और बैल बिना किसी ब्रेक के लंबे समय तक काम कर सकते हैं। बचौर गाय का औसत दूध उत्पादन 5% की औसत दूध वसा के साथ 347 किलोग्राम है। दुग्ध दूध की पैदावार 225 से 630 किलोग्राम तक होती है।
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