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ईस कहानी की शुरुआत होती है न्यूजीलैंड सें।

साल 1993 की बात है। न्यूजीलैंड के एक वैज्ञानिक ने दिलचस्प खोज की। उन्होंने पाया कि दूध, विशेष रूप से A1 दूध टाइप 1 डायबिटीज, दिल की बीमारी और कुछ न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के बढ़ते मामलों से जुड़ा हुआ था । उन्होंने एक और दिलचस्प खोज की जिसके मुताबिक A2 दूध को पचाना आसान होता है और ये हेल्दी भी होता है।

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इस अध्ययन से हमारी पारंपरिक भारतीय मान्यताओं को समर्थन मिला कि देसी गाय का दूध, जिसमें लगभग 100 प्रतिशत A2 बीटा केसिन होता है, वो ज्यादा पौष्टिक है.
कई अध्ययनों का दावा है कि देसी गाय ज्यादा स्वस्थ और मजबूत होती हैं। भारतीय जलवायु और पर्यावरण के लिए हमारी देसी गाय ही अधिक उपयुक्त हैं। इनमें गर्मी सहने और बीमारियों से लड़ने की ज्यादा ताकत होती है और इन्हें बचाने की जरूरत है.
दूध का प्रोटीन कंपोनेंट 80% केसिन से बना होता है. A1 और A2, गाय के दूध में पाए जाने वाले बीटा केसिन प्रोटीन के प्रकार हैं.

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UK से आयात की गई जर्सी गाय के दूध में A1 और A2 दोनों तरह के बीटा केसिन प्रोटीन पाए जाते हैं. वहीं यूरोप से आयातित होल्स्टीन गाय के दूध में A1 प्रोटीन होता है. व्यावसायिक तौर पर उत्पादित ज्यादातर दूध और दुग्ध उत्पादों में A1 बीटा केसिन ही होता है.
हम कह सकते हैं कि आजकल A2 ऑर्गेनिक दूध की क्रांति आ रही है. ऑर्गेनिक स्टोर्स, विशेष वेबसाइटों और बड़े स्तर पर लगने वाले मेलों में पैक किए हुए A2 घी, मक्खन, दूध और छाछ की मांग तेजी से बढ़ रही है.
ऐसे फॉर्म की तादाद बढ़ी है, जहां देसी गायों को पाला जाता है. ये स्थानीय फॉर्म छोटे होते हैं और महंगे भी होते हैं. (सोचिए 500 ग्राम घी की कीमत 1800 रुपये से ज्यादा होती है। 

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अब जहां तक भारत में देसी गायों की संख्या कम होने की बात है तो उसकी शुरुआत ऑपरेशन फ्लड से हुआ।
हमारे यहां दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए ऑपरेशन फ्लड लॉन्च किया गया।
70 के दशक में देश में दूध की कमी से निपटने के लिए जर्सी और होल्स्टीन नस्ल की गायों का आयात किया गया. इन गायों की देसी गाय संग क्रॉसब्रीडिंग (संकरण) कराई गई ताकि इस तरह से जन्मी नई नस्ल की गाय में दूध देने की क्षमता ज्यादा हो.
ज्यादातर देसी गाय प्रति लैक्टेशन चक्र में 1,600-2,500 किलोग्राम दूध देती हैं. होल्स्टीन फ्राइज़ियन और जर्सी प्योरब्रेड, और क्रॉसब्रेड से प्रति चक्र 4000 से 5000 किलोग्राम दूध मिलता है. इस तरह दूध उत्पादन बढ़ने से ऑपरेशन फ्लड सफल हुआ. लेकिन इस वजह से देसी गाय की अहमियत कम होने लगी। आज जब ज्यादातर भारतीय डायबिटीज और दिल की बीमारियों से ग्रसित हैं तब हमें अपनी देसी गायों की अहमियत पता चली है। लोग देसी गाय के फॉर्म लगाने का काम कर रहे हैं। अपने पर्सनल यूज़ के लिए देसी गायों की खरीददारी कर रहे हैं।

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आइए जानते हैं क्या है यह ए1और ए2 मिल्क


ए1 क्या है? 

जब गाय में प्राकृतिक बदलाव आया तब ये ए1 हुआ। यह ए2 के मुकाबले जेनेटिकली अलग है। इसमें एक अमीनो एसिड का अंतर है। यानी यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से आने वाली विदेशी गायों का दूध ए1 होता है, लेकिन इसका गुणवत्ता से लेनादेना नहीं है।
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इसे ऐसे समझना आसान होगा

ए2 बीटा कैसिन भारत की गायों से मिलने वाला दूध है। दरअसल, दूध में जो प्रोटीन होता है, वह पेप्टाइड्स में तब्दील होता है। बाद में यह अमीनो एसिड्स का स्वरूप लेता है। इस तरह का दूध पचाने में आसान रहता है।

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क्या यह पचने में आसान है?

ए1 बीटा कैसिन में पेप्टाइड्स को अमीनो एसिड्स में ब्रेक नहीं किया जा सकता। इसी कारण से ये पचाने योग्य नहीं होता है, जो कई तरह के रोगों को जन्म देता है।

ऐसा क्यों होता है?

दरअसल, बीसीएम7 नामक एक छोटा-सा प्रोटीन होता है, जो ए2 दूध देने वाली गायों के यूरीन, ब्लड या आंतों में नहीं पाया जाता है, लेकिन यही प्रोटीन ए1 गायों के दूध में पाया जाता है, इस कारण से ए1 दूध को पचाने में तकलीफ होती है।

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ए1 दूध में खराबी क्या है?

टाइप 1 डायबिटीज, दिल के रोग, बच्चों में सायकोमोटर का धीमा विकास, ऑटिज्म, सिजोफ्रेनिया, एलर्जी से बचाव न कर पाने जैसी कमियां इसमें हैं।

ए2 दूध इसलिए अच्छा

दोनों ही दूध में लैक्टोज तो रहता है, लेकिन ए2 दूध में लैक्टोज पचाया जा सकता है। साथ ही इसमें प्रोलिन नामक अमीनो एसिड है, जो इसे गुणकारी बनाता है। मानव, बकरी और भेड़ का दूध ए2 ही होता है।
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बच्चों को कौनसा दें?

बच्चों के लिए ए2 दूध ही श्रेष्ठ माना जाता है। क्योंकि इससे बच्चों में मोटापा नहीं होता, दिमागी क्षमता बढ़ती है, पाचन में वृद्धि होती है। मां बनी महिलाओं को इससे फीडिंग में आसानी होती है। यह दूध थकान, सुस्ती अधिक भूख और अधिक प्यास भी नहीं लगने देता है। इसमें ओमेगा फैट्स का श्रेष्ठ कॉम्बिनेशन होता है। भारतीय गायों का दूध इस श्रेणी में आता है। हमारे देश में साहिवाल व अन्य देसी गायें ये दूध देती हैं। गाय के दूध से बुखार, यूरिनरी ट्रेक की बीमारियां, रक्त की परेशानियों में राहत मिलती है। इसमें विटामिन डी भी मिलता है, जो आसानी से आंतों से कैल्शियम प्राप्त कर लेता है। मैनोपॉज और ओस्टियोपोरोसिस में भी गाय का दूध लाभ करता है।
कभी गाय के सभी दूध ए2 ही हुआ करते थे। यूरोप की गायों में कुछ जेनेटिक बदलाव होने से यह ए1 और ए2 हुआ है।