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मैसूर के बादशाह टीपू सुल्तान और अमृतमहल गाय का खास कनेक्शन है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि अमृतमहल गाय की प्रजाति इनके राज्य में विकसित करी गई थी। वहीं कुछ यह भी मानते हैं टीपू सुल्तान ने सिर्फ इसका नामकरण किया था। 
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अब फैक्ट जो भी रहा हो पर एक बात स्पष्ट है की टीपू सुल्तान को इस गाय में बेहद दिलचस्पी थी।
हमारे समझ से इसके साफ और स्पष्ट कारण है ।अमृतमहल गाय जितना वफादार और मालिक का आज्ञा पालन करने वाला गाय आपको पूरे भारत में कहीं नहीं मिलेगी। इसकी दूसरी खासियत आपको इसके तस्वीर को गौर फरमाने के बाद पता चल जाएगा। इसके पतले नुकीले सिंग और अनजान व्यक्तियों के प्रति इसका उग्र व्यवहार। जहां भारत के अन्य देसी प्रजातियां बेहद शांत और मिलनसार प्रवृत्ति की होती है वही अमृत महल गाय का उग्र स्वभाव हमें अचंभित करता है। बेहद कम दूध उत्पादन क्षमता होने के बावजूद आज भी यह कर्नाटक के अनेक डेयरी फार्मों का शोभा बढ़ा रहा है। आइए जानते हैं अमृतमहल गाय की विलक्षण विशेषताएं

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अमृतमहल प्रजाति के गोवंश कर्नाटक राज्य के मैसूर जिले में पाये जाते हैं।

अमृतमहल नस्ल की शारीरिक विशेषता

अमृतमहल नस्ल आमतौर पर काले , सफेद और स्लेटी रंग में पायी जाती है,
कुछ जानवरों में ग्रे-सफ़ेद रंग के चिन्ह और गले के नीचे लटकता हुआ घलदार मांस पाया जाता हैं |
इस पशु की शारीरिक बनावट बहोत अच्छी होती है मजबूत शरीर, छोटे कान, सीधे तीखे सींग आदि इसकी ख़ास विशेषताएं हैं
इस नस्ल के बैल मध्यम कद के और फुर्तीले होते हैं। नर अमृतमहल का औसत शारीरिक वजन 500 किलोग्राम और मादा का वजन 320 किलोग्राम होता है |

अमृतमहल बैल की विशेषता

अमृतमहल पशु सूखे स्थानों में बेहद प्रसिद्द हैं | ये अपनी शक्ति, सहनशीलता और सक्रियता के लिए जाने जाते हैं | इस प्रजाति के बैल विशेष रूप से यात्रा और परिवहन के लिए उपयुक्त होते हैं। उर्जावान शरीर होने के कारण इस नस्ल के बैलों का खेतों में बहोत उपयोग होता है |

अमृतमहल गाय का दूध उत्पादन

अमृतमहल नस्ल की गाये बहुत कम दूध देती हैं । ये गाये प्रतिदिन 1- 2 लीटर तक ही दूध दे पाती हैं | अमृतमहल पशु कठिन परिश्रम एवं मालिक की आज्ञा पालन क लिए जाना जाता है |